वर्तमान खानकाहें हमारी शान ही नहीं, बल्कि ज़रूरत भ
“विभिन्न धर्मों के बीच भाईचारा, सेवा कार्य और देश एवं समाज की उन्नति में अवध की खानकाहों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है:” प्रोफेसर मसूद अनवर अलवी
सूफ़ी बुजुर्ग अल्लाह का पैग़ाम लोगों के दिलों में उतारकर उन्हें इरफ़ान और मोहब्बत से परिचित कराते हैं और उन्हें जुल्म व जर्ब, बुग़्ज़ व हसद, नफ़रत व अदावत तथा तकलीफ़ पहुँचाने जैसी नापसंद आदतों से पाक करके, ईثار, भलाई, सहयोग और भाईचारे का अभ्यासी बनाकर एक सच्चे और शांतिपूर्ण समाज की रचना करते हैं।
आज हम इन्हीं अल्लाह के नेक बंदों की सेवाओं को याद करने, उनकी शिक्षाओं को अपनाने और उनके शिक्षा व प्रशिक्षण प्रणाली को अपना कर मौजूदा समाज को शांतिपूर्ण और लाभकारी बनाने के लिए एक कार्ययोजना तैयार करने के मकसद से एकत्र हुए हैं।
इन विचारों का इज़हार सैयद मोहम्मद अशरफ़ कलीम अशरफी जिलानी (सजादा नशीन, खानकाह अशरफिया, जाइस) ने दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार “अवध की खानकाहें और उनकी शैक्षणिक व सामाजिक सेवाएँ” के उद्घाटन सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान किया।
उनकी तबीयत खराब होने के कारण उनके अध्यक्षीय भाषण को प्रोफेसर सैयद अलीम अशरफ जासी ने पढ़कर सुनाया।
उन्होंने मौजूदा खानकाही प्रणाली को सक्रिय और प्रभावी बनाने पर ज़ोर दिया और कहा कि समय के बदलाव ने सब कुछ बदल दिया है; अब खानकाहों में न वह रुहानी गर्मी है, न असरदार शिक्षाएं, न सहरगाही आहें हैं और न ही अल्लाह का जिक्र है — सिवाय कुछ अपवादों के।
भूतकाल की वास्तविकता आज एक नाम मात्र बनकर रह गई है।
उन्होंने आज के वैश्वीकरण और ग्लोबलाइजेशन के दौर में तसव्वुफ़ की अहमियत को रेखांकित किया और इस युग में तसव्वुफ़ के पुनरुद्धार के लिए ग़ज़ाली की सोच और चिश्ती शिक्षाओं पर भरोसा करने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रोफेसर मसूद अनवर अलवी काकोरवी (पूर्व डीन, फेकल्टी ऑफ आर्ट्स, और मौजूदा प्रिंसिपल, विमेंस कॉलेज, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) ने सेमिनार के मुख्य विषय पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक कीनोट भाषण दिया।
उन्होंने अवध की लगभग सभी खानकाहों और उनकी शैक्षणिक व सामाजिक सेवाओं का एक समग्र खाका पेश किया और कहा कि अवध का क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक, सभ्यतागत और ऐतिहासिक विरासत के लिए मशहूर है।
इस भूमि ने ऐसे महान रत्न पैदा किए जिन्होंने ज्ञान, सद्गुण और उच्च चरित्र के ज़रिए गहरे सामाजिक और बौद्धिक प्रभाव छोड़े।
इनकी निःस्वार्थ सेवाओं को स्वीकार करना, उनकी आध्यात्मिक विरासत की रक्षा करना और उनके संदेश को आम करना हमारी नैतिक और बौद्धिक ज़िम्मेदारी है।
विभिन्न धर्मों के बीच भाईचारे, सामाजिक समरसता और अंतर-सांस्कृतिक संवाद, सेवा कार्यों और देश व समाज की प्रगति के लिए खानकाही प्रणाली का पुनरुद्धार अनिवार्य है।
इस राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन “शेख़-ए-तरीक़त” हज़रत सैयद शाह नईम अशरफ जिलानी जासी रहमतुल्लाह अलैह की जन्म शताब्दी के अवसर पर शेख़-ए-तरीक़त फाउंडेशन द्वारा खानकाह अहमदिया अशरफिया और दारुलउलूम जाइस के सहयोग से किया गया।
इस आयोजन का उद्देश्य अवध के खानकाही व्यवस्था की बहुआयामी धार्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक सेवाओं को उजागर करना और इस लाभकारी और उपयोगी शैक्षिक प्रणाली को पुनर्जीवित करना है।
यह दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन सत्र “अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर, केजीएमयू, लखनऊ” में संपन्न हुआ, जिसमें देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों से विद्वानों, शोधकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।
उद्घाटन सत्र में अवध की लगभग बाईस खानकाहों के सज्जादानशीन और प्रतिनिधियों ने शिरकत की और आयोजन पर बधाई दी और इसकी सफलता तथा सकारात्मक परिणामों के लिए शुभकामनाएँ व्यक्त कीं।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता सैयद शाह मोहम्मद अशरफ कलीम (सजादा नशीन, खानकाह अहमदिया अशरफिया, जाइस) ने की, जबकि संचालन के फरायज डॉ. मोहम्मद अब्दुल अलीम (असिस्टेंट प्रोफेसर, मणिपाल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद) ने निभाए।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुबह 11 बजे कुरआन मजीद की तिलावत से हुआ, इसके बाद सेमिनार के संयोजक प्रोफेसर सैयद अलीम अशरफ जासी ने उद्घाटन भाषण दिया।
प्रोफेसर जासी ने सबसे पहले पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा की और उद्घाटन सत्र में इस हमले के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव पेश किया।
साथ ही उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस्लाम में कट्टरता और आतंकवाद के लिए कोई जगह नहीं है।
प्रस्ताव में भारत सरकार से यह मांग की गई कि दोषियों को कड़ी सजा दी जाए।
प्रोफेसर जासी ने सेमिनार में आए सभी मेहमानों का स्वागत किया और सेमिनार के महत्व व उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।
इसके बाद विभिन्न खानकाहों के सज्जादानशीन, शहर के गणमान्य नागरिकों और प्रमुख विद्वानों ने Plenary Remarks पेश किए, जिनमें खानकाही सेवाओं के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया गया।
अपने विचार व्यक्त करने वालों में सैयद मोहम्मद अशरफ कछौछवी, जनाब अफज़ाल सफवी, एडवोकेट अथर नबी और प्रोफेसर सैयद ज़हीर हुसैन जाफरी शामिल थे।
सेमिनार के उद्घाटन सत्र में सेमिनार में प्रस्तुत किए जाने वाले शोधपत्रों पर आधारित पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
सत्र के अंत में मौलाना सैयद कसीम अशरफ (डायरेक्टर, एसएनए पब्लिक स्कूल व इंटर कॉलेज और दारुलउलूम जाइस) ने कृतज्ञता ज्ञापन पेश किया और सभी प्रतिभागियों तथा मेहमानों का धन्यवाद अदा किया।